लोगों की राय

स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ

चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : निरोगी दुनिया प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9413
आईएसबीएन :0000000

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

440 पाठक हैं

क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?

अपामार्ग

 

अपामार्ग के विभिन्न नाम

हिन्दी में- चिरचिटा, चिचड़ा, लटजीरा, ओगा, आँधीझाड़ा, संस्कृत में- अपामार्ग, शिखरी, खरमंजरी, किणिही,गुजराती में- अधेड़ों, बंगला में- अपांग, मराठी में-अघाड़ा, पंजाबी में- पुठकेंडा, अंग्रेजी में- Prickly ChaffFlower (प्रिकली चैफ फ्लावर) लेटिन में- एकायरेन्थस एस्पेरा (Achyranthes aspera)

अपामार्गका संक्षिप्त परिचय

अपामार्ग से अधिकांश व्यक्ति परिचित हैं। यह वही पौधा है जिसके साथ श्रावणी के दिन वेद-मंत्रों को पढ़कर मार्जन किया जाता है। इसी के द्वारा कार्तिक वदी चौदस तथा ऋषि पंचमी के दिन दंतधावन किया जाता है। इस पौधे का विवरण अथर्ववेद में भी मिलता है। अपामार्ग दो प्रकार का होता है- एक लाल तथा दूसरा सफेद। लाल अपामार्ग की शाखायें कुछ लालपन लिये हुये होती हैं तथा उसके पत्तों पर भी लाल निशान होते हैं। सफेद अपामार्ग की शाखाओं एवं पत्तियों पर लाल रंग का अभाव होता है। यह पौधा प्राय: भारत के सभी प्रदेशों में पाया जाता है। इनमें भी कहीं-कहीं यह वर्ष भर मिलता है और कहीं केवल वर्षा ऋतु में ही पाया जाता है। वर्षा का जल पड़ते ही यह अंकुरित होने लगता है। शीत ऋतु में यह अच्छा विकसित होता है और ग्रीष्म ऋतु में सूख जाता है

अपामार्ग का धार्मिक महत्त्व

अपामार्ग का धार्मिक रूप से बहुत अधिक महत्त्व है। शास्त्रों में इसके महत्त्व एवं उपयोगिता के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसकी जड़ आदि के अनेक धार्मिक उपाय हैं जिनका प्रयोग करने पर व्यक्ति को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। संक्षित रूप से इसे इस प्रकार देखा जा सकता है:-

> शुभ मुहूर्त में विधि-विधान के अनुसार अपामार्ग की मूल को निकाल लें। अपामार्ग की दो जातियां होती हैं- श्वेत एवं रक्त अपामार्ग। इनमें से श्वेत अपामार्ग ज्यादा प्रभावी होती है, अत: उसके उपलब्ध होने पर उसकी मूल प्राप्त करें। यदि वह न मिल सके. तब रक्त अपामार्ग की मूल प्राप्त करें। यह लाल रंग की आभा वाले तने की जाति की होती है। शुभमुहूर्त में निकाली गई मूल को किसी सूती धागे से 7 बार लपेट कर धारण करने से विषमज्वर दूर होता है। इसके निकालने का विशेष शुभ समय रवि पुष्य योग माना गया है।

> उपरोक्तानुसार शुभ मुहूर्त में प्राप्त की गई श्वेत अपामार्ग की मूल को घिसकर तिलक लगाने से सम्मोहन होता है।

> इसके लिये श्वेत अपामार्ग की मूल को गुरु पुष्य नक्षत्र में पूर्व निमंत्रण देकर निकालकर जो व्यक्ति सिरहाने रखकर सोता है उसे शीघ्र नींद आ जाती है।

> जिस बालक को बार-बार नजर लगती हो और इसका प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर पड़ता है तो अपामार्ग की जड़ का प्रयोग करके नजरदोष से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। इसके लिये किसी भी अपामार्ग की जड़ अथवा 2-3 पते प्राप्त करें। उसे काले छोटे कपड़े में पोटली की भांति रखकर ऊपर से काले धागे से बांध दें। इसके पश्चात् 7 अथवा 9 बार त्रालक के ऊपर से उल्टा उसारा करें। उसारा करते समय बालक की नजर दोष मुक्ति के लेये मानसिक रूप से प्रार्थना करते रहें। इसके पश्चात् अपने घर से कहीं दूर किसी चौराहा पर डाल दें। शीघ्र ही आपका बच्चा नजर पीड़ा से मुक्त होकर हंसने-खेलने लगेगा।

> अपामार्ग की मूल से सिद्ध तेल की शरीर पर मालिश करने से शरीर पर निखार, आने लगता है। श्वेत अपामार्ग की शुभ मुहूर्त में प्राप्त की गई मूल को थोड़े से सरसों के तेल में खूब गर्म कर लें और मूल को तेल में ही पड़े रहने दें। इससे यह तेल सिद्ध हो जायेगा। जब तेल ठण्डा हो जाये तो इसे छान कर शीशी में भर कर सुरक्षित रख लें। केवल सिर को ओड़कर शरीर के शेष भाग में इसकी मालिश करने से काले वर्ण के व्यक्ति का रंग भी खिल उठता है।

> श्वेत अपामार्ग के लगभग 20 ग्राम बीजों को भली प्रकार से भूसी हटाकर 250 ग्राम दूध में उबाल कर खीर बना लें। इस खीर को खाने से सम्बन्धित व्यक्ति को 3 से 7 दिनों तक भूख नहीं लगती है।

> श्वेत अपामार्ग के बीजों को घृत मिलाकर जहाँ हवन किया जाता है, वहाँ से मृगी रोग विदा हो जाता है। श्वेत अपामार्ग के बीज इस पौधे के शीर्ष पर एक लड़ी पर चावल के समान लगे होते हैं।

अपामार्ग का औषधीय महत्त्व

औषधीय रूप से अपामार्ग का बहुत अधिक महत्व माना गया है। अपामार्ग का अर्थ है जो रोगों का संशोधन करे अर्थात् रोगों को ठीक करे। विशेष रूप से यह बढ़ी हुई भूख को शांत करता है तथा दाँत के रोगों के साथ-साथ अन्य अनेक रोगों को भी ठीक करता है। यह उदर रोगों में बहुत ही उपयोगी है। यकृत रोग में यह विशेष लाभकारी है। पिताश्मरी, कृमि, शोथ, वृक्क शोथ, कुष्ठ रोग में भी इसका प्रयोग किया जाता है। औषधीय रूप में इसका पंचांग मुख्य रूप से काम में लिया जाता है। यहाँ संक्षित में इसके कुछ प्रमुख प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है:-

> दाँतों के रोगों में इसका विशेष प्रयोग किया जाता है। यह दाँत में होने वाली पीड़ा से मुक्ति दिलाता है। इसके 4-5 पत्ते लेकर स्वच्छ कर लें। इन्हें ठीक से कूट कर इनका रस प्राप्त करें। इस रस को रूई में लगाकर फोया बनाकर दाँत पर लगाने से लाभ मिलता है।

> दाँतों के लिये नीम की दातुन का बहुत अधिक उलेख प्राप्त होता है किन्तु अपामार्ग की टहनी की दातुन बनाकर दाँत रगड़ने से भी इतना ही लाभ मिलता है। इसकी ताजी जड़ प्राप्त करके उससे दातुन करने से दाँत चमकने लगते हैं तथा दाँतों से सम्बन्धित अन्य समस्यायें भी दूर होती हैं। दाँतों का हिलना, मुँह से दुर्गन्ध का आना तथा मसूड़ों की कमजोरी इसके प्रयोग से दूर होती है।

> श्वास रोगों में अपामार्ग की पत्तियों को लाभकारी पाया गया है। इसके लिये 8 से 10 पत्तियों को लेकर सुखा लें। इसके बाद इनको चिलम अथवा हुके द्वारा पीने से अत्यन्त लाभ प्राप्त होता है।

> बच्चों में अगर कफ जमने तथा खाँसी की समस्या है तो इसके लिये यह प्रयोग करें। इसके अन्तर्गत अपामार्ग की जड़ का चूर्ण लगभग आधा चम्मंच लेकर उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर बच्चे को चटा दें। इससे छाती में जमा कफ दूर होकर शान्ति की प्रति होगी।

> महिलाओं में होने वाले रक्तप्रदर रोग में अपामार्ग का प्रयोग बहुत अधिक लाभ देता है। इसके लिये अपामार्ग की ताजी पत्तियां लगभग 10 ग्राम तथा इससे आधी मात्रा 5 ग्राम के लगभग हरी घास प्राप्त करें। दोनों को अच्छी प्रकार से पीस लें। इसमें एक कप के बराबर जल मिलाकर छान लें। इसमें स्वाद के अनुसार मिश्री अथवा शहद मिलाकर प्रात:काल में सेवन करें। इसका निरन्तर 15 दिन तक सेवन करें अथवा रोग के ठीक होने तक नियमित रूप से करें। अवश्य ही लाभ की प्राप्ति होगी।

> कर्णपीड़ा में इसके पतों के अर्क की एक-दो बूंद को कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है।

> इसकी टहनी से दातुन करने से दाँत तो साफ होते ही हैं, साथ ही बुद्धि भी बढ़ती है। इसलिए अपमार्ग की दातुन अवश्य करें।

> जिस व्यक्ति को बिच्छूने काटा हो उसके विष के प्रभाव को समाप्त करने के लिये दंश किये स्थान पर तथा उसके आस-पास अपामार्ग की जड़ को फिरायें। ऐसा करने से बिच्छू दंश का प्रभाव समाप्त हो जाता है। तत्पश्चात् उसी जड़ को जल में घिसकर अथवा पीसकर दंशित स्थान पर रख दें। ऐसा करने से विष का प्रभाव समाप्त हो जायेगा। प्राचीनकाल में विष उतारने के लिये यह प्रयोग बहुत अधिक किया जाता था।

> अपामार्ग की जड़ के एक छोटे टुकड़े को ताबीज में रखकर काले धागे में गले में बांधने से नजर नहीं लगती है।

> दमा रोग में लाल अपामार्ग की एक तोला जड़ को घोंटकर उसमें 21 कालीमिर्च मिलाकर रोगी को रविवार के दिन स्नान कराकर पिलायें। उस दिन ऊपर से केवल दही। चावल ही खिलायें। एक बार में ही इस प्रयोग से दमा शांत हो जाता है। कुछ कमी रहने पर 15 दिन बाद पुन: एक बार इस प्रयोग को करें। दो बार से अधिक यह प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये। यह प्रयोग किसी वैद्य के निर्देशन में करना अधिक उपयुक्त रहेगा।

> भोजन के तीन घंटे बाद अथवा सोने से पूर्व अपामार्ग की जड़ का गर्म क्राथ सेवन करना यकृत के लिये लाभदायक होता है।

अपामार्ग का दिव्य प्रयोग

अपामार्ग के पौधे का दिव्य उपयोगी अंग उसकी जड़ है। इस मूल को पूर्व निमंत्रित करके शुभ मुहूर्त में निकालकर सुरक्षित रख लें। यह मूल समय-समय पर निम्र उपयोग में ली जा सकती है:-

1. जिस व्यक्ति को बिच्छुने काटा हो तथा जहाँ तक उसके विष का प्रभाव हो वहाँ से दंशित स्थान तक फेरने मात्र से दंश का प्रभाव समाप्त हो जाता है। बाद में उसी जड़ को जल में घिसकर अथवा पीसकर दंशित स्थान पर रख दिया जाता है।

2. इस मूल के एक छोटे से टुकड़े को गले में ताबीज में रखकर बांधने से नज़र नहीं लगती है।

3. अपामार्ग की अभिमंत्रित जड़ को हाथ में लेकर किसी भी वाहन के चारों ओर परिक्रमा करके फिर उस जड़ को उसी वाहन में ड्राईवर के समक्ष रखने से उस वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने की सम्भावना नहीं होती है और यदि दुर्घटना हाती भी है तो उसमें जान-माल की हानि अति न्यून होती है।

4. इस मूल को पास में रखने वाले पर शत्रु आसानी से हमला नहीं कर पाता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. उपयोगी हैं - वृक्ष एवं पौधे
  2. जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
  3. जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां
  4. तुलसी
  5. गुलाब
  6. काली मिर्च
  7. आंवला
  8. ब्राह्मी
  9. जामुन
  10. सूरजमुखी
  11. अतीस
  12. अशोक
  13. क्रौंच
  14. अपराजिता
  15. कचनार
  16. गेंदा
  17. निर्मली
  18. गोरख मुण्डी
  19. कर्ण फूल
  20. अनार
  21. अपामार्ग
  22. गुंजा
  23. पलास
  24. निर्गुण्डी
  25. चमेली
  26. नींबू
  27. लाजवंती
  28. रुद्राक्ष
  29. कमल
  30. हरश्रृंगार
  31. देवदारु
  32. अरणी
  33. पायनस
  34. गोखरू
  35. नकछिकनी
  36. श्वेतार्क
  37. अमलतास
  38. काला धतूरा
  39. गूगल (गुग्गलु)
  40. कदम्ब
  41. ईश्वरमूल
  42. कनक चम्पा
  43. भोजपत्र
  44. सफेद कटेली
  45. सेमल
  46. केतक (केवड़ा)
  47. गरुड़ वृक्ष
  48. मदन मस्त
  49. बिछु्आ
  50. रसौंत अथवा दारु हल्दी
  51. जंगली झाऊ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai